Evidence Act Notes

Indian Evidence Act

The Indian Evidence Act, 1872, is a comprehensive piece of legislation that governs the rules and regulations related to evidence in both civil and criminal proceedings in India. The Act, which has been in force for over 140 years with minimal amendments, is a testament to its comprehensive nature and relevance. The Act primarily deals with the concept of evidence law, which governs the methods by which cases are conducted in terms of the production of relevant oral, documentary, and material evidence, and the examination of witnesses. It establishes two fundamental concepts: relevancy and admissibility, which form the backbone of any legal proceeding.

The Act also categorizes evidence into different types, including oral evidence, documentary evidence, and material evidence, each having its own set of rules and regulations.

Some of the important provisions under the Act include the relevancy of facts, admission, confession, legal presumptions, burden of proof, and estoppel.

Evidence Act

These provisions play a crucial role in the determination of the outcome of a case. Over the years, there have been several judicial pronouncements with respect to the Indian Evidence Act, which have helped in interpreting and understanding the Act.

Despite being enacted in 1872, the Law of Evidence continues to be applicable with the least amendments possible over more than 140 years, highlighting its comprehensive nature and the foresight of its drafters.

However, for a more detailed study, it is recommended to refer to comprehensive notes or textbooks on the subject or consult legal professionals.

This is a simplified overview and may not cover all aspects of the Indian Evidence Act, 1872. It is always advisable to refer to the Act itself or consult a legal professional for a comprehensive understanding.

*धारा 1 संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ

*धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ*

*संक्षिप्त नाम:* इस अधिनियम को “भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872” कहा जाएगा।

*विस्तार:* यह अधिनियम संपूर्ण भारत पर लागू है, लेकिन जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर।

*प्रारंभ:* यह अधिनियम 1 सितंबर, 1872 को लागू हुआ।

*उद्देश्य:* इस अधिनियम का उद्देश्य न्यायालयों में साक्ष्य के उपयोग को नियंत्रित करना है। यह अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि न्यायालयों में केवल प्रासंगिक और विश्वसनीय साक्ष्य ही पेश किए जाएं।

*उदाहरण:*

* एक हत्या के मुकदमे में, गवाह यह गवाही देता है कि उसने आरोपी को हत्या के हथियार के साथ देखा। यह प्रासंगिक साक्ष्य है क्योंकि यह आरोपी के अपराध को साबित करने में मदद कर सकता है।
* एक चोरी के मुकदमे में, गवाह यह गवाही देता है कि उसने आरोपी को चोरी के माल के साथ देखा। यह प्रासंगिक साक्ष्य है क्योंकि यह आरोपी के अपराध को साबित करने में मदद कर सकता है।
* एक मानहानि के मुकदमे में, गवाह यह गवाही देता है कि उसने प्रतिवादी को अभियोजक के बारे में अपमानजनक बयान देते हुए सुना। यह प्रासंगिक साक्ष्य है क्योंकि यह प्रतिवादी के अपराध को साबित करने में मदद कर सकता है।

*अपवाद:*

यह अधिनियम कुछ न्यायालयों या कार्यवाहियों पर लागू नहीं होता है, जैसे:

* सैन्य न्यायालय
* शपथ पत्र प्रस्तुत करने की कार्यवाही
* मध्यस्थता कार्यवाही

*संबंधित धाराएँ:*

* धारा 2: प्रासंगिकता
* धारा 3: साक्ष्य की क्षमता
* धारा 4: मौखिक साक्ष्य
* धारा 5: दस्तावेजी साक्ष्य
* धारा 6: भौतिक साक्ष्य
* धारा 7: विशेषज्ञ साक्ष्य
* धारा 8: चरित्र साक्ष्य
* धारा 9: राय साक्ष्य
* धारा 10: स्वीकृतियाँ
* धारा 11: कबूलनामे

*धारा 2 अधिनियमितियों का निरसन

*धारा 2: निरसन*

* धारा 2 को निरसन अधिनियम, 1938 (1938 का 1) की धारा 2 और अनुसूची द्वारा निरसित कर दिया गया है।
* इसलिए, यह धारा अब प्रभावी नहीं है।

*धारा 3 निर्वचन खण्ड

*धारा 3:* निर्वचन खण्ड

*न्यायालय:* न्यायालय से तात्पर्य सभी न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों से है, साथ ही सभी ऐसे व्यक्तियों से है जो कानूनी रूप से साक्ष्य लेने के लिए अधिकृत हैं। इसका अर्थ है कि किसी भी प्रकार का न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट, चाहे वह किसी भी स्तर का हो, न्यायालय के दायरे में आता है।

*तथ्य:* तथ्य से तात्पर्य किसी ऐसी वस्तु, वस्तुओं की स्थिति या वस्तुओं के संबंध से है जिसे इंद्रियों द्वारा समझा जा सकता है। इसमें कोई मानसिक स्थिति भी शामिल है जिसका किसी व्यक्ति को एहसास होता है।

*उदाहरण:*

* यह कि किसी निश्चित स्थान में निश्चित क्रम में निश्चित पदार्थ व्यवस्थित हैं, एक तथ्य है।
* यह कि किसी व्यक्ति ने कुछ सुना या देखा, एक तथ्य है।
* यह कि किसी व्यक्ति ने कुछ शब्द कहे हैं, एक तथ्य है।
* यह कि कोई व्यक्ति एक निश्चित राय रखता है, एक निश्चित इरादा रखता है, अच्छी या बुरी नीयत से काम करता है, या किसी विशिष्ट शब्द का एक विशिष्ट अर्थ में उपयोग करता है, या उसे किसी विशिष्ट भावना का ज्ञान है या किसी विशिष्ट समय में था, एक तथ्य है।
* यह कि किसी व्यक्ति की एक निश्चित प्रतिष्ठा है, एक तथ्य है।

*सुसंगत:* एक तथ्य दूसरे तथ्य के साथ सुसंगत कहा जाता है जब वे एक गतिविधि के दौरान घटित होते हैं या दोनों तथ्यों के बीच एक मजबूत साहचर्य या संबंध होता है।

*विवाद्यक तथ्य:* विवाद्यक तथ्य से तात्पर्य उस तथ्य से है जिससे किसी अधिकार, दायित्व या अक्षमता का अस्तित्व, अनुपस्थिति, प्रकृति या सीमा उत्पन्न होती है जिसका किसी मुकदमे या कार्यवाही में दावा या खंडन किया जाता है।

*उदाहरण:* अ की हत्या का आरोप ख पर है। उसके मुकदमे में, निम्नलिखित तथ्य विवाद्यक हो सकते हैं:

* यह कि ख ने अ की हत्या की
* यह कि ख का इरादा अ की हत्या करने का था
* यह कि ख को अ से गंभीर और अचानक उकसावा मिला था
* यह कि अ की हत्या करने के समय ख मानसिक विक्षिप्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति को समझने में असमर्थ था

*दस्तावेज:* दस्तावेज से तात्पर्य किसी ऐसे विषय से है जिसे किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त या वर्णित किया गया है, और जिसका उपयोग उस विषय के रिकॉर्डिंग के उद्देश्य से किया जाता है या किया जा सकता है।

*उदाहरण:*

* लेख दस्तावेज हैं
* मुद्रित, लिथोग्राफ या फोटोग्राफ की गई शब्द दस्तावेज़ हैं
* मानचित्र या आरेख दस्तावेज हैं
* धातु की प्लेट या पत्थर पर उत्कीर्ण लेख दस्तावेज़ हैं
* एक कार्टून एक दस्तावेज है

*साक्ष्य:* साक्ष्य से तात्पर्य उन सभी कथनों से है जिन्हें न्यायालय जांच के तहत तथ्यों के बारे में गवाहों से लेने की अनुमति देता है या अपेक्षा करता है। ये कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं। इसमें न्यायालय के निरीक्षण के लिए प्रस्तुत सभी दस्तावेज़ भी शामिल हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भी शामिल हैं। ऐसी दस्तावेजों को दस्तावेजी साक्ष्य कहा जाता है।

*साबित हुआ:* कोई तथ्य साबित हुआ कहा जाता है जब न्यायालय अपने सामने रखे तथ्यों पर विचार करने के बाद यह मानता है कि उस तथ्य का अस्तित्व है।

*नासाबित:* कोई तथ्य नासाबित हुआ कहा जाता है जब न्यायालय अपने सामने रखे तथ्यों पर विचार करने के बाद यह मानता है कि उस तथ्य का अस्तित्व नहीं है।

*साबित नहीं हुआ:* कोई तथ्य साबित नहीं हुआ कहा जाता है जब वह न तो साबित हुआ हो और न ही नासाबित।

*भारत:* भारत से तात्पर्य जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर भारत के राज्यक्षेत्र से है।

*धारा 4: उपधारणा कर सकेगा

*धारा 4: उपधारणा*

1. *उपधारणा कर सकेगा:*

* जब भी इस अधिनियम में कहा गया हो कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, तो न्यायालय निम्नलिखित में से एक या दोनों कर सकता है:

* उस तथ्य को साबित हुआ मान सकता है, जब तक कि और जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि वह तथ्य असत्य है।
* उस तथ्य के सबूत की मांग कर सकता है।

2. *उपधारणा करेगा:*

* जब भी इस अधिनियम में कहा गया हो कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा करेगा, तो न्यायालय उस तथ्य को साबित हुआ मानेगा, जब तक कि और जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि वह तथ्य असत्य है।

3. *निश्चायक सबूत:*

* जब इस अधिनियम में कहा गया हो कि एक तथ्य किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत है, तो न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस दूसरे तथ्य को भी साबित हुआ मानेगा। इस स्थिति में, न्यायालय उस दूसरे तथ्य को असत्य साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मानेगा।

*धारा 4 के उदाहरण:*

1. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ख) यह उपधारणा करती है कि यदि किसी व्यक्ति को सात साल या उससे अधिक समय तक लापता माना जाता है, तो यह माना जाएगा कि वह व्यक्ति मर चुका है। इस उपधारणा के कारण, अदालत को उस व्यक्ति की मृत्यु के लिए कोई सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।

2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 एक तथ्य को दूसरे तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित करती है। उदाहरण के लिए, धारा 106 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को हत्या के अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो यह इस बात का निश्चायक सबूत है कि उस व्यक्ति ने मृतक को मार डाला। इस स्थिति में, अदालत को यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मानेगा कि उस व्यक्ति ने मृतक को नहीं मारा।

*धारा 4 का महत्व:*

* धारा 4 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जिसका उपयोग अदालतों द्वारा अक्सर साक्ष्य के बोझ को स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है।
* यह प्रावधान अदालतों को ऐसे मामलों में फैसला करने में मदद करता है जहां सबूत स्पष्ट नहीं होते हैं।
* यह प्रावधान अदालती कार्यवाही को तेज करने में भी मदद करता है, क्योंकि अदालतों को ऐसे तथ्यों को साबित करने के लिए सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होती है जिन्हें पहले से ही सिद्ध माना जाता है।

*धारा 4 से संबंधित अन्य प्रावधान:*

* भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114: यह धारा लापता व्यक्तियों की मृत्यु के संबंध में एक उपधारणा बनाती है।
* भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106: यह धारा कुछ तथ्यों को अन्य तथ्यों का निश्चायक सबूत घोषित करती है।
* भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 135: यह धारा न्यायालयों को अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग करके कुछ तथ्यों की उपधारणा करने की अनुमति देती है।

धारा 5 : विवाद्यक तथ्यों और सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा

धारा 5, भारतीय साक्ष्य अधिनियम: विवाद्यक तथ्यों और सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकेगा

इस धारा के अनुसार, किसी मुकदमे या कार्यवाही में, निम्नलिखित तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकता है:

1. विवाद्यक तथ्य: ये वे तथ्य हैं जिन पर विवाद चल रहा है। उदाहरण के लिए, किसी हत्या के मामले में, विवाद्यक तथ्य यह होगा कि प्रतिवादी ने पीड़ित को मार डाला या नहीं।

2. सुसंगत तथ्य: ये ऐसे तथ्य हैं जो विवाद्यक तथ्यों से संबंधित होते हैं और उनकी प्रासंगिकता होती है। उदाहरण के लिए, किसी हत्या के मामले में, सुसंगत तथ्य यह हो सकता है कि प्रतिवादी और पीड़ित के बीच अनबन चल रही थी, या प्रतिवादी के पास हत्या के समय हत्या का हथियार था।

धारा 5 में यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऐसे किसी भी तथ्य का साक्ष्य नहीं दिया जा सकता है जिसके बारे में किसी अन्य कानून के तहत साक्ष्य देने से व्यक्ति प्रतिबंधित हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को किसी सिविल प्रक्रिया से संबंधित कानून के तहत किसी तथ्य को साबित करने से प्रतिबंधित किया गया है, तो वह उस तथ्य का साक्ष्य नहीं दे सकता है, भले ही वह विवाद्यक तथ्य हो।

दृष्टांत:

(क) क पर ख की मृत्युकारित करने के आशय से उसे लाठी मारकर उसकी हत्या कारित करने का आरोप है। क के विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाद्य हैं:

* क का ख को लाठी से मारना
* क का ऐसी मार द्वारा ख की मृत्यु कारित करना
* ख की मृत्यु कारित करने का क का आशय

(ख) एक वादकर्ता अपने साथ वह बंधपत्र, जिस पर वह निर्भर करता है, मामले की पहली सुनवाई पर अपने साथ नहीं लाता और पेश करने के लिए तैयार नहीं रखता। यह धारा उसे इस योग्य नहीं बनाती कि सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा विहित शर्तों के अनुकूल वह उस कार्यवाही के उत्तरवर्ती प्रक्रम में उस बंधपत्र को पेश कर सके या उसकी अंतर्वस्तु को साबित कर सके।

धारा 5 का उपयोग अन्य संबंधित धाराओं के साथ किया जाता है, जैसे कि धारा 6, जो बताती है कि सुसंगत तथ्य क्या हैं, और धारा 7, जो बताती है कि विवाद्यक तथ्य क्या हैं। इन धाराओं के संयुक्त उपयोग से, न्यायालय यह निर्धारित कर सकता है कि किसी मामले में कौन से तथ्यों का साक्ष्य दिया जा सकता है और कौन से तथ्यों का साक्ष्य नहीं दिया जा सकता है।

धारा 6: एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति

धारा 6: एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों की सुसंगति

यह धारा यह निर्धारित करती है कि ऐसे तथ्य जो विवादास्पद न हों, लेकिन किसी विवादास्पद तथ्य से इस तरह से जुड़े हों कि वे एक ही लेनदेन का हिस्सा हों, वे सुसंगत हैं। इसका मतलब यह है कि भले ही वे एक ही समय और स्थान पर या अलग-अलग समय और स्थानों पर घटित हों, उन्हें सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि ए पर बी की हत्या का आरोप है। बी को पीट-पीटकर मार डाला गया था। ऐसे में, ए या बी या पास में खड़े लोगों द्वारा पिटाई के समय या उससे इतने कम समय पहले या बाद में जो कुछ भी कहा या किया गया था, वह उसी लेनदेन का हिस्सा बन गया है, वह सुसंगत तथ्य है।

एक अन्य उदाहरण में, मान लीजिए कि ए पर एक सशस्त्र विद्रोह में भाग लेने का आरोप है, जिसमें संपत्ति को नष्ट कर दिया गया था, सेना पर हमला किया गया था और जेलों को तोड़ दिया गया था। ऐसे में, इन तथ्यों का घटित होना सामान्य लेनदेन का हिस्सा होने के नाते सुसंगत है, भले ही ए उन सभी में उपस्थित न रहा हो।

एक तीसरे उदाहरण में, मान लीजिए कि ए एक पत्र में निहित अपमानजनक लेखन के लिए बी पर मुकदमा दायर करता है। ऐसे में, जिस विषय में अपमानजनक लेखन हुआ है, उससे संबंधित पक्षकारों के बीच जितने भी पत्र उस पत्र-व्यवहार का हिस्सा हैं जिसमें वह निहित है, वे सुसंगत तथ्य हैं, भले ही उनमें वह अपमानजनक लेखन स्वयं निहित न हो।

अंत में, मान लीजिए कि सवाल यह है कि क्या बी द्वारा आदेशित कुछ सामान ए को दिया गया था। उस सामान को क्रमिक रूप से कई मध्यवर्ती व्यक्तियों को दिया गया था। ऐसे में, हर एक डिलीवरी एक सुसंगत तथ्य है।

धारा 6 को अन्य संबंधित धाराओं के साथ भी पढ़ा जाना चाहिए, जैसे कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 7, जो उन तथ्यों की व्याख्या करती है जो नहीं हैं सुसंगत माना जाता है।

*धारा 7: तथ्य जो एक विवादित तथ्य के पूर्ववर्ती, कारण या परिणाम हैं*

*धारा 7: तथ्य जो एक विवादित तथ्य के पूर्ववर्ती, कारण या परिणाम हैं*

*सरल शब्दों में:* इस धारा के अनुसार, तथ्य जो एक विवादित तथ्य के पहले, कारण या परिणाम हैं, वे सुसंगत हैं। दूसरा शब्दों में, यदि कोई तथ्य किसी अन्य तथ्य के अस्तित्व या अनुपस्थिति को साबित करने के लिए प्रासंगिक है, तो उसे अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है।

*उदाहरण:*

* एक मामले में, यह साबित करने के लिए कि प्रतिवादी ने किसी अपराध को अंजाम दिया है, यह दिखाना प्रासंगिक है कि प्रतिवादी अपराध के समय घटनास्थल पर मौजूद था।
* एक अन्य मामले में, यह साबित करने के लिए कि प्रतिवादी ने किसी व्यक्ति की हत्या की है, यह दिखाना प्रासंगिक है कि प्रतिवादी के पास हत्या के हथियार थे और वह हत्या के समय मृतक व्यक्ति के साथ विवाद में था।

*संबंधित धाराएँ:*

* धारा 6: प्रासंगिक तथ्य
* धारा 8: तथ्य जो उन तथ्यों के समान हैं जो प्रासंगिक हैं
* धारा 9: तथ्य जो किसी प्रासंगिक तथ्य के अस्तित्व या अनुपस्थिति से संबंधित हैं

*आपराधिक कानून:*

* भारतीय दंड संहिता
* दंड प्रक्रिया संहिता
* साक्ष्य अधिनियम

*धारा 8: कारण, तैयारी और पूर्व या बाद का आचरण*

*धारा 8: कारण, तैयारी और पूर्व या बाद का आचरण*

* कोई भी तथ्य, जो किसी विवादित तथ्य या प्रासंगिक तथ्य के कारण या तैयारी को दर्शाता या बनाता है, प्रासंगिक है।
* किसी मुकदमे या कार्यवाही में किसी पक्षकार या पक्षकार के एजेंट का ऐसे मुकदमे या कार्यवाही के बारे में या उसमें विवादित तथ्य या उससे संबंधित किसी तथ्य के बारे में आचरण और किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण, जिसके खिलाफ कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है, प्रासंगिक है, यदि ऐसा आचरण किसी विवादित तथ्य या प्रासंगिक तथ्य को प्रभावित करता है या उससे प्रभावित होता है, चाहे वह उससे पहले का हो या बाद का।

*स्पष्टीकरण 1:* इस धारा में “आचरण” शब्द में कथन शामिल नहीं हैं, जब तक कि वे कथन अलग-अलग कार्यों के साथ-साथ और उन्हें स्पष्ट करने वाले न हों, लेकिन इस अधिनियम की किसी अन्य धारा के तहत उन कथनों की प्रासंगिकता पर इस स्पष्टीकरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

*स्पष्टीकरण 2:* जब किसी व्यक्ति का आचरण प्रासंगिक है, तो उससे, या उसकी उपस्थिति और सुनवाई में किया गया कोई भी कथन, जो उस आचरण पर प्रभाव डालता है, प्रासंगिक है।

*उदाहरण:*

(क) ख की हत्या के लिए क पर मुकदमा चलाया जा रहा है। ये तथ्य कि क ने ग की हत्या की, कि ख जानता था कि क ने ग की हत्या की है और कि ख ने अपनी इस जानकारी को सार्वजनिक करने की धमकी देकर क से पैसे निकालने की कोशिश की थी, प्रासंगिक हैं।

(ख) क बांड के आधार पर रुपये के भुगतान के लिए ख पर मुकदमा चलाता है। ख इस बात से इनकार करता है कि उसने बांड लिखा था। यह तथ्य प्रासंगिक है कि उस समय, जब बांड लिखा जाना बताया गया था, ख को किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए पैसे की आवश्यकता थी।

(ग) विष द्वारा ख की हत्या करने के लिए क पर मुकदमा चलाया जा रहा है। यह तथ्य प्रासंगिक है कि ख की मृत्यु से पहले क ने ख को दिए गए विष के समान विष प्राप्त किया था।

(घ) सवाल यह है कि क्या एक निश्चित दस्तावेज़ क की इच्छा है। ये तथ्य प्रासंगिक हैं कि कथित इच्छा की तारीख से कुछ दिन पहले क ने उन विषयों की जांच की, जिनका कथित इच्छा के प्रावधानों से संबंध है, कि उसने वकीलों से उस इच्छा को बनाने के बारे में परामर्श किया और उसने अन्य इच्छाओं का मसौदा तैयार किया, जिन्हें उसने पसंद नहीं किया।

(ङ) क एक अपराध का आरोपी है। ये तथ्य कि कथित अपराध से पहले या अपराध करने के समय या उसके बाद क ने ऐसे सबूतों का प्रबंधन किया जिसकी प्रवृत्ति ऐसी थी कि मामले के तथ्य उसके अनुकूल दिखाई देते थे या उसने सबूतों को नष्ट कर दिया या छिपा दिया या उन व्यक्तियों की उपस्थिति को रोक दिया, जो गवाह हो सकते थे, या अनुपस्थिति प्राप्त की या लोगों को उसके संबंध में झूठी गवाही देने के लिए तैयार किया, प्रासंगिक हैं।

(च) सवाल यह है कि क्या क ने ख को लूटा। ये तथ्य कि ख के लूटे जाने के बाद ग ने क की उपस्थिति में कहा कि “ख को लूटने वाले आदमी को खोजने के लिए पुलिस आ रही है”, और कि इसके तुरंत बाद क भाग गया, प्रासंगिक हैं।

(छ) सवाल यह है कि क्या ख के प्रति क का 10,000 रुपये का कर्ज है। यह तथ्य कि क ने ग से पैसे उधार मांगे और कि ग की उपस्थिति और सुनवाई में घ ने कहा कि “मैं तुम्हें सलाह देता हूं कि तुम क पर भरोसा न करो, क्योंकि वह ख के प्रति 10,000 रुपये का कर्जदार है”, और कि क बिना कोई उत्तर दिए चला गया, एक प्रासंगिक तथ्य है।

(ज) सवाल यह है कि क्या क ने अपराध किया है। यह तथ्य कि एक पत्र प्राप्त करने के बाद, जिसमें उसे चेतावनी दी गई थी कि अपराधी की जांच की जा रही है, फरार हो गया और उस पत्र की सामग्री, प्रासंगिक है।

(झ) क एक अपराध का आरोपी है। ये तथ्य कि कथित अपराध किए जाने के बाद वह फरार हो गया या उस अपराध से अर्जित संपत्ति या संपत्ति का आय उसके कब्जे में था या उसने उन वस्तुओं को छिपाने का प्रयास किया, जिससे वह अपराध किया गया था, या किया जा सकता था, प्रासंगिक हैं।

(ञ) सवाल यह है कि क्या क के साथ बलात्कार किया गया था। यह तथ्य कि कथित बलात्कार के तुरंत बाद उसने अपराध के बारे में शिकायत की, वे परिस्थितियाँ जिनके तहत और वे शब्द जिनमें वह शिकायत की गई, प्रासंगिक हैं। यह तथ्य कि उसने बिना शिकायत किए कहा कि मेरे साथ बलात्कार किया गया है, इस धारा के तहत आचरण के रूप में प्रासंगिक नहीं है। यद्यपि वह धारा 32 खंड (1) के तहत मृत्युकालीन कथन, या धारा 157 के तहत सहायक साक्ष्य के रूप में प्रासंगिक हो सकता है।

(ट) सवाल यह है कि क्या क को लूटा गया था। यह तथ्य कि कथित लूट के तुरंत बाद उसने अपराध के संबंध में शिकायत की, वे परिस्थितियाँ जिनके तहत और वे शब्द, जिनमें वह शिकायत की गई, प्रासंगिक हैं; यह तथ्य कि उसने बिना कोई शिकायत किए कहा कि मुझे लूट लिया गया है, इस धारा के तहत आचरण के रूप में प्रासंगिक नहीं है; यद्यपि वह धारा 32 खंड (1) के तहत मृत्युकालीन कथन, या धारा 157 के तहत सहायक साक्ष्य के रूप में प्रासंगिक हो सकता है।

*धारा 9: स्पष्टीकरण और पुनःस्थापन के लिए तथ्य*

*धारा 9: स्पष्टीकरण और पुनःस्थापन के लिए तथ्य*

* *परिभाषा:* यह धारा उन तथ्यों को परिभाषित करती है जो एक विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य की व्याख्या, समर्थन, खंडन, या पूरक के लिए आवश्यक हैं।
* *उदाहरण:*
* *उदाहरण (क):* यदि यह विवाद है कि क्या एक दस्तावेज किसी व्यक्ति की वसीयत है, तो उस व्यक्ति की संपत्ति की स्थिति या उस समय उनके परिवार की स्थिति प्रासंगिक तथ्य हो सकते हैं।
* *उदाहरण (ख):* यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर मानहानि का मुकदमा कर रहा है, तो मानहानि कथित तौर पर प्रकाशित होने के समय दोनों पक्षों की स्थिति और संबंध प्रासंगिक तथ्य हो सकते हैं।
* *उदाहरण (ग):* यदि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप है, तो अपराध किए जाने के तुरंत बाद उनका घर छोड़ना प्रासंगिक तथ्य हो सकता है।
* *उदाहरण (घ):* यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर अनुबंध का उल्लंघन करने का मुकदमा कर रहा है, तो अनुबंध के समाप्त होने के समय दोनों पक्षों के बीच बातचीत प्रासंगिक तथ्य हो सकती है।
* *उदाहरण (ङ):* यदि किसी व्यक्ति को चोरी की संपत्ति देते हुए देखा जाता है, जो बाद में उसे किसी अन्य व्यक्ति को देते हुए देखा जाता है, तो बाद वाला व्यक्ति यह कहते हुए कि “क ने कहा है कि तुम इसे छिपा दो”, प्रासंगिक तथ्य हो सकता है।
* *उदाहरण (च):* यदि किसी व्यक्ति पर दंगा भड़काने का आरोप है, और यह साबित हो चुका है कि वह भीड़ के आगे-आगे चल रहा था, तो भीड़ की आवाज़ें प्रासंगिक तथ्य हो सकती हैं।

* *अन्य संबंधित धाराएँ:*
* *धारा 8:* यह धारा उन तथ्यों को परिभाषित करती है जो विवाद्यक तथ्यों से पहले और उनसे प्रभावित आचरण के रूप में प्रासंगिक हैं।
* *धारा 10:* यह धारा उन तथ्यों को परिभाषित करती है जो विवाद्यक तथ्यों के बाद और उनसे प्रभावित आचरण के रूप में प्रासंगिक हैं।
* *धारा 11:* यह धारा उन तथ्यों को परिभाषित करती है जो किसी तथ्य की अनन्यता या समय और स्थान को स्थापित करने के लिए प्रासंगिक हैं।

धारा 10. सामान्य परिकल्पना के बारे में षड्यंत्रकारी द्वारा कही या की गई बातें:

धारा 10. सामान्य परिकल्पना के बारे में षड्यंत्रकारी द्वारा कही या की गई बातें:

किसी आपराधिक गतिविधि को करने के लिए दो या अधिक व्यक्तियों के बीच साजिश रचने या सहमति बनाने के मामले में यह धारा प्रासंगिक है। यदि यह साबित हो जाता है कि ऐसी साजिश या सहमति वास्तव में हुई थी, तो इस धारा के तहत किसी एक षड्यंत्रकारी द्वारा कही गई बातें या किए गए कार्य अन्य षड्यंत्रकारियों के खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

उदाहरण 1: मान लीजिए कि क, ख, ग और घ ने मिलकर बैंक डकैती की साजिश रची है। क ने डकैती के लिए हथियार खरीदे, ख ने बैंक की सूचना एकत्र की, ग ने डकैती में इस्तेमाल होने वाली कार की व्यवस्था की और घ ने डकैती के बाद पैसे छिपाने का स्थान तय किया। यदि पुलिस इन चारों को गिरफ्तार करती है और क के बयान में वह स्वीकार करता है कि उसने हथियार खरीदे और डकैती की योजना बनाई, तो क का बयान अन्य तीनों षड्यंत्रकारियों के खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

उदाहरण 2: मान लीजिए कि क, ख और ग ने मिलकर नशे की तस्करी की साजिश रची है। क ने नशीले पदार्थ खरीदे, ख ने उन्हें पैक किया और ग ने उन्हें वितरित किया। यदि पुलिस इन तीनों को गिरफ्तार करती है और क के बयान में वह स्वीकार करता है कि उसने नशीले पदार्थ खरीदे और तस्करी की योजना बनाई, तो क का बयान अन्य दो षड्यंत्रकारियों के खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

धारा 10 अन्य आपराधिक मामलों में भी लागू होती है, जैसे साजिश, हत्या, चोरी, आदि। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी साजिश या सहमति में शामिल सभी व्यक्तियों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके, भले ही उनमें से कुछ ने सीधे तौर पर अपराध नहीं किया हो।

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