By: LAWSPARKCategory: lAWSPARK ARTICLE Tag: FOR RJS MPCJ UPPCSJ CHATTISGARAH UTRAKHAND JHARKHAND BIHAR JUDICIARY EXAMS:
नियम 1के अनुसार ‘ अभिवचन ‘ सेवादपत्र या लिखित कथनअभिप्रेत होगा |
अभिवचन का सम्पूर्ण उद्देश्यपक्षकारो के बीच वास्तविक विवाद का निर्धारण , विवाद के विस्तार – क्षेत्र को सीमित करना , और यह देखना कि दोनों पक्ष को किस बिंदु पर परस्पर विरोध है ।एक पक्षकार द्वारा दुसरे को आश्चर्यचकित करने से रोकना और न्याय की हत्या को रोकना है ।
नियम 2के अनुसारअभिवचन में तात्विक तथ्यों का , न कि साक्ष्य का कथन होगा
इस नियम की व्याख्या करने से अभिवचन के जो सामान्य नियम उभर के आते है वो निम्न है –
1 .तथ्यों का अभिवचन करें विधि का नहीं– अभिवचन का सबसे महत्वूर्ण नियम यह है कि उसमे तथ्यों एवं घटनाओं का वर्णन किया किया जाना चाहिए न कि विधि का क्योंकि किन तथ्यों और घटनाओं पर कौन सी विधि लागू होगी यह निश्चित करना न्यायालय का काम है ।
2 .केवल सारभूत तथ्यों का अभिवचन करें
– अभिवचन में केवल सारवान तथ्यों का कथन होना चाहिए ।
–सारवान तथ्यों से तात्पर्यउन तथ्यों से है जिस परवादी का वाद हेतुक और प्रतिवादी का बचाव निर्भरकरता है । दूसरे शब्दों में वे सारे तथ्य जिन्हें न्यायालय में साबित किया जाना चाहिए ताकि वाद हेतुक या बचाव का विद्यमान होना स्थापित किया जा सके , सारवान तथ्य कहलाते हैं ।
3 .तथ्यों का अभिवचन करे साक्ष्य का नहीं
अभिवचन में केवल उन्ही तथ्यों का कथन रहेगा जिस पर अभिवचन करने वाला पक्षकार अपने दावे या बचाव के लिए निर्भर करता है ।
किसी भी मामले में दो प्रकार के तथ्य होते है
a . वे तथ्य जिनको साबित किया जाना है , और
b . साक्ष्य सम्बन्धी तथ्य जिनके द्वारा उपरोक्त को साबित किया जाता है ।
-जिन सारभूत तथ्यों पर पक्षकार अपने बचाव या दावे के लिए निर्भर करता है उन्हेंसाबित किए जाने वाले तथ्यकहा जाता है ।
और ऐसे तथ्यों का कथन अभिवचन में अवश्य ही किया जाना चाहिए
-वही दूसरी तरफ उन तथ्यों को जिनके माध्यम से साबित किये जाने वाले तथ्यों को साबित किया जाता है , उन्हेंसाक्ष्य सम्बन्धी तथ्यकहा जाता है ।
अभिवचन में ऐसे तथ्यों का कथन नहीं किया जाना चाहिए ।
उदाहरण के लिएजहां ‘ A ‘ के जीवन पर एक बीमा पालिसी से सम्बंधित वाद बीमा कंपनी के विरुद्ध संस्थित किया गया है । बीमा पालिसी की एक शर्त यह है कि यदि बीमादार आत्महत्या कर लेता है तो बीमा पालिसी शून्य हो जायेगी ।
अगर बीमा कंपनी यह बचाव लेती है कि ‘ A ‘ ने आत्महत्या की थी तो बीमा कंपनी को यह अभिवचन करना चाहिए कि ‘ A ‘ की मृत्यु स्वयं अपने हाथ से हुयी है । वहां बीमा कंपनी यह अभिवचन नहीं कर सकती कि ‘ A ‘ कई दिनों से उदास था तथा यह कि उसने पिस्टल खरीदा और उसी से अपने को दाग लिया |यह सब साक्ष्य है , वे तथ्य जिनके माध्यम से साबित किया जाने वाला तथ्य अर्थात ‘ आत्महत्या ‘ साबित की जायेगी ।
4 .संक्षिप्त कथन
अभिवचनसंक्षेप में और शुद्धता के साथतैयार किया जाना चाहिए । हर अभिकथन आवश्यकता अनुसारपैराग्राफ में विभक्तकिया जाएगा और यथाक्रम संख्यांकितकिया जाएगा ।
नियम 4के अनुसार उन सभी मामलों में जहां अभिवचन करने वाला पक्षकार किसीदुर्व्यपदेशन , कपट , न्यासभंग , जानबूझकर किये गये व्यतिक्रम या असम्यक असर के अभिवाक पर निर्भरकरता है , वहां इन सभी के बारे मेंविशेष विवरणदिया जाना चाहिए | जहां आवश्यक हो वहांतारीख और विषयके साथ आवश्यक विवरण दिए जाने चाहिए ।
नियम 14अभिवचन का हस्ताक्षरित किया जाना
हर अभिवचनपक्षकार द्वाराऔर यदि उसका कोईप्लीडरहो तो उसके द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा ।
परन्तु जहां अभिवचन करने वालापक्षकार अनुपस्थितिके कारण या किसी अन्यअच्छे हेतुकसे अभिवचन पर हस्ताक्षर करने मेंअसमर्थहै वहां वह ऐसे व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया जा सकेगा जो उसकी ओर से उसे हस्ताक्षरित करने के लिए या वाद लाने की प्रतिरक्षा करने के लिए उसके द्वारा सम्यक रूप सेप्राधिकृतहै ।
नियम 15अभिवचनों का सत्यापन
प्रत्येक अभिवचन का चाहे वहवादपत्र हो या लिखित कथनउसकासत्यापन पक्षकार द्वारायापक्षकार में से किसी एक के द्वारा या किसी अन्य के द्वाराजिसके बारे मेंन्यायालय को समाधानहो जाये कि वहमामले के तथ्यों से परिचितहै , सत्यापित किया जाएगा ।
अभिवचन का सत्यापन आवश्यक है परन्तु यदि सत्यापन समुचित नहीं है और वादी वादपत्र में अपना पक्ष स्पष्ट कर देता है , तो वादपत्र का समुचित न होना या सत्यापन का न होना , वादपत्र के ख़ारिज करने का कारण नहीं बनेगा ।
नियम 15 ( 2 )के अनुसारसत्यापन करने वाला व्यक्ति संख्यांकित पैराओं के बारे में यह बतायेगाकि कौन सा पैरा वह – अपनेनिजी ज्ञानके आधार पर सत्यापित करता है और कौन सा पैरा वहऐसी जानकारी के आधार पर सत्यापित करता है जो उसे मिली हैऔर जिसके बारे में उसका यह विश्वास है कि वह सत्य है ।
नियम 15 ( 3 )के अनुसारसत्यापन करने वाले व्यक्ति द्वारा वह सत्यापन हस्ताक्षरितकिया जाएगा और उसमे उसतारीखका जिसको और उसस्थानका जहां यहहस्ताक्षरित किया गया था कथन किया जाएगा ।
नियम 15 ( 4 )के अनुसारअभिवचन का सत्यापन करने वाला व्यक्तिभी अपनेअभिवचन के समर्थन मेंशपथपत्रउपलब्ध कराएगा
यह एक अनिवार्य शर्त हो सकता है परन्तु जैसा किजी . एम . सिद्देश्वर बनाम प्रसन्ना कुमार , 2013 के वाद मेंकहा गया कि चुनाव याचिका के अभिवचन के समर्थन में शपथपत्र जरुरी नहीं है ।
नियम 17 अभिवचन का संशोधन
न्यायालयदोनों में सेकिसी पक्षकार कोकार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम मेंअनुज्ञा देसकेगा कि वह अपने अभिवचनो कोऐसी रीतिसे और ऐसेनिर्बधनोंपर जोन्याय संगतहोपरिवर्तित करे या संशोधितकरे और सभी ऐसे संशोधन किये जायेंगे जो पक्षकारो के बीच मेंविवादाग्रस्त वास्तविक प्रश्नके अवधारणके प्रयोजन के लिए आवश्यक हो ।
परन्तु यह कि संशोधन के लिए कोई आवेदन विचारण प्रारम्भ होने के पश्चात् अनुज्ञात नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचता है कि सम्यक तत्परता के पश्चात् भी पक्षकार मामले को विचारण प्रारम्भ होने से पूर्व नहीं उठा सकता था ।
न्यायालय का संशोधन मंजूर करने का विवेकाधीन अधिकार है ।
किसी भी संशोधन से पूर्व न्यायालय को निम्न बातो पर विचार करना चाहिए कि क्या ऐसा संशोधन –
1 . न्याय के हित में है , या
2 . पक्षकारों के बीच विवादग्रस्त वास्तविक प्रश्नों के अवधारण के लिए आवश्यक है , या ।
3 . वाद की बहुलता को रोकने के लिए क्या ऐसा किया जाना आवश्यक है ?
4 . दूसरे पक्षकार के लिए अन्यायपूर्ण नहीं है ।
संशोधन की अनुमति – सामान्यतया अभिवचन में संशोधन की अनुमति निम्न अवस्था में दी जायेगी
1 . जहां ऐसा करना पक्षकारों के बीचविवादग्रस्त वास्तविक प्रश्नो के अवधारण के लिए आवश्यक है, और
2 . ऐसे संशोधन सेविरोधी पक्षकार को कोई क्षति नहीं पहुंचती|
संशोधन की अनुमति कब अस्वीकार कर दी जायेगी
1 . जहां ऐसासंशोधनपक्षकारो के बीचविवादग्रस्त वास्तविक प्रश्नों के अवधारण के लिए आवश्यक नहींहै ।
2 . जहां प्रस्तावित संशोधन सेवादी का वाद पूर्णरूप से विस्थापितहो जाएगा |
3 . जहां ऐसे संशोधन का परिणाम दुसरे पक्षकार से उसकेविधिक अधिकार को छीन लेना, जो उसमें समय के बीत जाने के कारण प्रोद्भूत हो गया है , अस्वीकार कर दिया गया है ।
4 . जहां संशोधन काआवेदन सद्भावपूर्वक नहींदिया गया है ।
5 . जहां संशोधनपर्याप्त विलम्बसे चाहा गया हो और विलम्ब कासंतोषजनक कारण न बतायागया हो ।
6 . जहां संशोधन सेलिखित कथन में की गयी स्वीकृतिवापस मान ली जायेगी वहांसंशोधन की अनुमति नहींदी जायेगी । 7 . जहां संशोधन विलम्ब से चाहा गया और वह बचाव की प्रकृति को बदल देता है ।
नियम 18आदेश के पश्चात संशोधन करने में असफल रहना
जहां किसीपक्षकार ने अपने अभिवचन में संशोधन का आदेश प्राप्तकर लिया है , वहां उसे न्यायालय द्वारानिश्चित समय के भीतर या ऐसा समय निश्चित नहीं किया गया है , वहां आदेश की तिथि से 14 दिन के भीतरसंशोधन कर देना चाहिए ।
यदि न्यायालय ने संशोधन की अवधि अपने आदेश द्वारा बढ़ा न दिया हो और सम्बंधित पक्षकार अपने अभिवचन में संशोधन करने में असफल रहता है और न्यायालय द्वारा निश्चित समय या 14 दिन , जैसा भी मामला हो , समाप्त हो जाता है , तो उस पक्षकार को संशोधन करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाएगा |
परन्तु जहां ऐसा संशोधन निश्चित अवधि के अंतर्गत नहीं किया गया है , वहां कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐसी अवधि संहिता की धारा 151 के अंतर्गत बढाई जा सकती है ।
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