जुडिशरी एग्जाम # CPC 1908 कमीशन धारा 75 से 78
By: LAWSPARKCategory: lAWSPARK ARTICLE Tag: FOR RJS MPCJ UPPCSJ CHATTISGARAH UTRAKHAND JHARKHAND BIHAR JUDICIARY EXAMS:
न्यायालयों की शक्ति अध्याय 3 , धारा 26 से 35 में वर्णित है ।(CPC 1908)
भारतीय दण्ड संहिता के अधीन किये गये अपराध का विचारणउच्च न्यायालयद्वारा अथवासेशन न्यायालयद्वारा या किसी ऐसेअन्य न्यायालयद्वारा किया जा सकता है , जिसे दण्ड प्रक्रिया संहिता कीप्रथम अनुसूचीमें दर्शित किया गया है ।
जब किया गया अपराध भारतीय दण्ड संहिता से भिन्न अन्य विधि के अधीन किया गया हो तब उसका विचारण उस न्यायालय द्वारा किया जायेगा जो उस विधि में उल्लिखित हो ।
धारा 26—उक्त विधि में किसी न्यायालय का उल्लेख न होने की स्थिति में, ऐसे अपराध का विचारणउच्च न्यायालयद्वारा अथवाद . प्र . सं . की प्रथम अनुसूची में दर्शित किसी अन्य न्यायालय द्वाराकिया जा सकता है ।
दण्ड प्रक्रिया संहिता ( संशोधन ) अधिनियम , 2008 के द्वारा धारा 26 के उपखण्ड ( क ) के अन्त में परन्तुक जोड़ा गया जिसमें 2013 और 2018 में भी संशोधन किया गया है जो इस प्रकार है-
👉 ‘ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 , धारा 376 क , धारा 376 क ख , धारा 376 ख , धारा 376 ग , धारा 376 घ , धारा 376 घ क , धारा 376 घ ख या धारा 376 ङ के अधीन किसी अपराध का विचारण यथासाध्यऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा , जिसमें महिला पीठासीन अधिकारी हो ।
किशोर अपराधियों का विचारण ( Trial of Juvenile Of fenders ) –
धारा 27-ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने या लाये जाने के समय यदि16 वर्ष से कमहै और उसके द्वारा किया गया अपराधमृत्यु दण्डअथवाआजीवन कारावाससे दण्डनीयनहीं हैतो ऐसे किशोर द्वारा कारित अपराध का विचारण या तोमुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटद्वारा अथवाबाल अधिनियम 1960) द्वारायाकिशोर अपराधियों के उपचार प्रशिक्षण एवं पुनर्वास के लिए उपबन्ध करने वाली किसी अन्य विधि के अधीनविशेष रूप से सशक्त किये गये न्यायालय द्वारा किया जा सकता हैं ।
👉 किशोरों के सन्दर्भ में अधिकारिता के प्रयोग के लिएकिशोर न्याय ( बालकों की देखरेख एवं संरक्षण ) अधिनियम , 2000वर्तमान में प्रभावी है ।
न्यायालयों द्वारा दण्डादेश दिये जाने की अधिकारिता ( Power of Courts to pass sentences )– उच्च न्यायालय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई दण्डादेश दे सकता है । सेशन न्यायाधीश अथवा अपर सेशन न्यायालय भी विधि द्वारा प्राधिकृत कोई दण्ड दे सकता है । किन्तु उसके द्वारामृत्यु दण्डादेश दिये जाने पर उच्च न्यायालय को उसे पुष्ट ( Confirm ) करना होगा( धारा 366 से 371 )
धारा 28—सहायक सेशन न्यायाधीशदस वर्षतक की अवधि केकारावास तथा जुर्मानेका दण्डादेश दे सकता है ।
👉मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट सात वर्ष तककी अवधि केकारावास एवं जुर्मानेका दण्डादेश दे सकता हैं
👉प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट तथा महानगर मजिस्ट्रेटतीन वर्ष तक की अवधि का कारावासअथवादस हजार रुपये जुर्मानायादोनोंका दण्डादेश दे सकता है ।
धारा 29—द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट एक वर्ष तक की अवधि का कारावासअथवापाँच हजार रुपये जुर्मानायादोनोंका दण्डादेश दे सकता है ।
दण्ड प्रक्रिया संहिता ( संशोधन ) अधिनियम , 2005 के द्वारा संहिता की धारा 29 के उपधारा ( 2 ) में शब्दपाँच हजार रुपये के स्थान पर शब्द ” दस हजार रुपयेतथा उपधारा ( 3 ) में शब्द ‘एक हजार रुपये के स्थान पर शब्द ” पाँच हजार रुपयेप्रतिस्थापित किया गया है ।
👉 किसी सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा जुर्माना देने में व्यतिक्रम ( Default ) करने में न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध उतनी अवधि का कारावास अधिनिर्णीत कर सकता है , जो विधि द्वारा प्राधिकृत है ,
👉 किन्तु मजिस्ट्रेट द्वारा इस रूप में निर्णीतकारावास उतनी अवधि से अधिक नहीं होगा, जितनी तक के लिए मजिस्ट्रेटधारा 29 , द . प्र . सं . के अधीन सशक्त किया गया है ।
👉 कारावास मुख्य दण्डादेश के एक भाग के रूप में दिये जाने की स्थिति में उस कारावास की अवधि केएक चौथाई से अधिक नहीं होगा, जिसको मजिस्ट्रेट उस अपराध के लिए देने के लिए सक्षम हैं ,न कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर ।
धारा 30— दण्ड के तौर पर जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर अधिनिर्णीत कारावास, सम्बन्धित मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 29 , ( द . प्र . सं . ) के अधीन अधिनिर्णीत की जा सकने वाली अधिकतम अवधि के कारावास केमुख्य दण्डादेश के अतिरिक्त हो सकता है
👉यदि अपराध भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत किया गया ऐसा अपराध हैं , जो मात्र जुर्माने से दण्डनीय है
-तो जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने के स्थिति में अधिरोपित कारावाससादाहोगा तथा
-जुर्माना की धनराशिपचास रुपयेतक होने पर अधिकतमदो मासका कारावास ,
-जुर्माना धनराशिएक सौ रुपयेहोने पर अधिकतमचार मासका कारावास और
-किसी अन्य स्थिति में अधिकतमछह मासका कारावास अधिरोपित किया जायेगा ।
किसी अभियुक्त को एक ही विचारण में एक से अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किये जाने परन्यायालय भारतीय दण्ड संहिता कीधारा 71के अधीन रहते हुये उसे विभिन्न अपराधों के लिए उपबन्धित दण्डों में से वह दण्ड दे सकता है , जिसके लिए वह प्राधिकृत है ।
👉 न्यायालय द्वारा एक साथ भोगे जाने का निदेश न दिये जाने पर , ऐसे विभिन्न दण्ड एक क्रम से प्रणीत होंगे ।
👉 कई अपराधों के लिए एक साथ दिये गये विभिन्न दण्डादेशों काकुल योग उस मात्रा से अधिक हो जाने परजिसके लिये वह न्यायालय सक्षम है , न्यायालय के लिए उस अपराधी को विचारण के लिएउच्चतम न्यायालयके समक्ष भेजना आवश्यक नहीं है
👉 किन्तु इस प्रकार विभिन्न अपराधों के लिए दिये गये दण्ड कीकुल मात्रा चौदह वर्ष के कारावास के दण्ड से अधिक नहीं होगीएवंकुल दण्ड की मात्रा उस दण्ड की मात्रा के दुगुने से अधिक नहीं होगी, जिसे एक अपराध के लिए देने के लिए वह न्यायालय सक्षम है ।
👉 किन्तु दोषसिद्धि के पश्चात् अपराधी द्वारा दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील के प्रयोजन के लिए विभिन्न अपराधों के लिए दिये गये दण्डादेशों का कुल योग मिलाकर एक दण्डादेश समझा जायेगा ।
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